Lekhika Ranchi

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काजर की कोठरी--आचार्य देवकीनंदन खत्री


काजर की कोठरी : खंड-2


यों तो कल्याणसिंह के बहुत-से मेली-मुलाकाती थे मगर सूरजसिंह नामी एक जिमींदार उनका सच्चा और दिली दोस्त था, जिसकी यहाँ के राजा धर्मसिंह के वहाँ भी बड़ी इज्जत और कदर थी। सूरजसिंह का एक नौजवान लड़का भी था, जिसका नाम रामसिंह था और जिसे राजा धर्मसिंह ने बारह मौजों का तहसीलदार बना दिया था। उन दिनों तहसीलदारों को बहुत बड़ा अख्तियार रहता था, यहाँ तक सैकड़ों मुकदमे दीवानी और फौजदारी के खुद तहसीलदार ही फैसला करके उसकी रिपोर्ट राजा के पास भेज दिया करते थे। रामसिंह को राजा धर्मसिंह बहुत मानते थे। अस्तु, कुछ तो इस सबब से मगर ज्यादे अपनी बुद्धिमानी के सबब उसने अपनी इज्जत और धाक बहुत बढ़ा रक्खी थी। जिस तरह कल्याणसिंह और सूरजसिंह में दोस्ती थी, उसी तरह रामसिंह और हरनंदन में (जिसकी शादी होनेवाली थी) सच्ची मित्रता थी और आज की महफिल में वे दोनों ही बाप-बेटा मौजूद भी थे।


रामसिंह और हरनंदनसिंह दोनों मित्र बड़े ही होशियार, बुद्धिमान, पंडित और वीर पुरुष थे और उन दोनों का स्वभाव भी ऐसा अच्छा था कि जो कोई एक दफे उनसे मिलता और बातें करता वही उनका प्रेमी हो जाता। इसके अतिरिक्त वे दोनों मित्र खूबसूरत भी थे और उनका सुडौल तथा कसरती बदन देखने ही योग्य था।


जब कल्याणसिंह की घबराहट का हाल लोगों को मालूम हुआ और महफिल में खलबली पड़ गई तो सूरजसिंह और हरनंदन भी कल्याणसिंह के पास जा पहुँचे, जो दुखित हृदय से उस पिटारे के पास बैठे हुए थे, जिसमें खून से भरे हुए शादीवाले जनाना कपड़े निकले थे। थोड़ी ही देर में वहाँ बहुत-से आदमियों की भीड़ हो गई, जिन्हें सूरजसिंह ने बड़ी बुद्धिमानी से हटा दिया और एकांत हो जाने पर कल्याणसिंह से सब हाल पूछा। कल्याणसिंह ने जो देखा था या जो कुछ हो चुका था बयान किया और इसके बाद अपने कमरे में ले जाकर वह स्थान भी दिखाया जहाँ पिटारा पाया गया था और साथ ही इसके अपने दिल का शक भी बयान किया।


हरनंदन को जब हाल मालूम हो गया तो वह चुपचाप अपने कमरे में चला गया और आरामकुर्सी पर बैठ कुछ सोचने लगा। उसी समय कल्याणसिंह के समधियाने से अर्थात लालसिंह के यहाँ से यह खबर आ पहुँची कि ‘सरला’ (जिसकी हरनंदन से शादी होनेवाली थी) घर में से यकायक गायब हो गई और उस कोठरी में जिसमें वह थी सिवाय खून के छींटे और निशानों के और कुछ भी देखने में नहीं आता।


यह मामला निःसंदेह बड़ा भयानक और दुखदाई था। बात-की-बात में यह खबर भी बिजली की तरह चारों तरफ फैल गई। जनानों में रोना-पीटना पड़ गया। घंटे ही भर पहिले जहाँ लोग हँसते-खेलते घूम रहे थे, अब उदास और दुखी दिखाई देने लगे। महफिल का शामियाना उतार लेने के बाद गिरा दिया गया। रंडियों को कुछ दे-दिलाकर सवेरा होने के पहिले ही विदा हो जाने का हुक्म मिला। इसके बाद जब सूरजसिंह और रामसिंह सलाह-विचार करके कल्याणसिंह से विदा हुए और मिलने के लिए हरनंदन के कमरे में आए तो हरनंदन को वहाँ न पाया, हाँ खोज-खबर करने पर मालूम हुआ कि बाँदी रंडी के पास बैठा हुआ दिल बहला रहा है, वही बाँदी रंडी जिसका जिक्र इस किस्से के पहिले ब्यान में आ चुका है और जो आज की महफिल में नाचने के लिए आई थी।


सूरजसिंह और रामसिंह को यह सुनकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि हरनंदन बाँदी रंडी के पास बैठा दिल बहला रहा है! क्योंकि वे हरनंदन के स्वभाव से अनजान न थे और इस बात को भी खूब जानते थे कि वह रंडियों के फेर में पड़ने या उनकी सोहबत को पसंद करनेवाला लड़का नहीं है और फिर ऐसे समय में जबकि चारों तरफ उदासी फैली हुई हो उसका बाँदी के पास बैठकर गप्पें उड़ाना तो हद दर्जे का ताज्जुब पैदा करता था। आखिर सूरजसिंह ने अपने लड़के रामसिंह को निश्चय करने के लिए उस तरफ रवाना किया, जिधर बाँदी रंडी का डेरा था और आप लौटकर पुन: अपने मित्र कल्याणसिंह के पास पहुँचे, जो अपने कमरे में अकेले बैठे कुछ सोच रहे थे।

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क्रमश

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